Tuesday 2 October 2012

इस्लामी मिथक, दलीलें और मंशा


भाइयों चलिए जानते है इस्लाम के कुछ मिथक और मुल्लो के दलीलों के साथ उनका जवाब भी  :-

पोपट मोहम्मद के कथन का मिथक :-


अघोरी आया भगवान शिव का एक नौकर था जिसका नाम अल्लाह उर्फ खुदा था । वह काम चोर था इसलिये एक दिन कार्तिकेय जी ने श्राप दिया की तुझे कोई मनुष्य नहीं पूजेगा । वह खुदा बहुत धूर्त था वह जानता था की शिव औघड़ दानी है जल्दी मान जायेंगे अत: उस अल्लाह ने मक्का के काबे मे शिवलिंग स्थापित कर पूजा करने लगा भगवान शिव प्रशन्न हो गये पूछा तुझे क्या वर चाहिए उसने कहा हे प्रभ ू आपसे संबंधित हर वस्तु पूजी जाती है जैसे -डमरू ,त्रिशूल नन्दी, चन्द्रमा, गंगा, ईत्यादी परंतु मै आपका सेवक हूँ मुझे कोई नहीं पूजता । शिव बोले मै कार्तिकेय के श्राप को नहीं काट सकता परंतु एक उपाय है तू बेवकूफ मनुष्यो को चुन ( उन्ही बेकुफो में से एक था पोपट  मोहम्मद )  और उनका लिंग कटवाने के लिये उन्हें प्रेरित कर जब लिंग कट जायेगा तो वो मनुष्य नहीं रह जायेंगे तब वे तुम्हारी पूजा करेंगे । शिव बोले परंतु तेरे अनुयायीयों को जीवन मे कम से कम एक बार काबे के मेरे इस काले शिव लिंग की पूजा ब्राह्मण भेष धारण कर हिन्दू रीती से करनी होगी वर्ना तेरा नाम संसार से मिट जायेगा । इसलिये हर मुसलमान जीवन मे कम से कम एक बार ब्राह्मण भेष( सफेद वस्त्र धारण कर बाल व डाढी मुडाकर) हिन्दू रिती (परिक्रमा) करते हुवे उस काले शिवलिंग की पूजा कर ईस्लाम के विरूद्ध बूतपरस्ती करते हैं । 


१.  इस्लाम इंसानियत सिखाता है
जाहिर सी बात सीखाता होगा, क्योकि इस्लाम में सर्वधर्म समभाव नहीं है, और शायद कुरआन में इसी को इंसानियत कहते होंगे . 

मुल्ला दलील  : इस्लाम ऐसा कुछ नहीं सिखाता, इस्लाम सर्वधर्म समभाव है .  ये सब  इस्लाम विरोधी तत्वों के खराब कल पुरजो वाले दिमाग की उपज है . 

जवाब : भाई यदि ऐसा है तो  "जजिया कर " क्या है ?? जो अन्य धर्मो द्वारा मुसलमान शाशको को दिया जाता है यदि इस्लामी शाशन हो तो. अकबर जजिया कर हटा  के महान बन गया , ठीक वैसे है जैसे कोई हत्यारा किसी की जान बख्श दे तो महान हो जाए जबकि  एक शांति प्रिय राजा नहीं बन पाया क्योकि वो कसाई नहीं था की किसी की जान बक्श दे . 

हाँ हिन्दुत्व जरुर सर्वधर्म समभाव के खिलाफ है, क्योकि हिंदू बहुल राष्ट्रों में मुसलमानों से जजिया जो नहीं लिया जाता, मुसलमानों से कजिया जो नहीं किया जाता, बल्कि उलट आरक्षण और अन्य सुविधाएँ दी जाती है, शर्म आणि चाहिए हिंदुओं को  जो अपने अंदर इस्लामियत टाइप का सर्वधर्म नहीं ला पा रहें  है .
वैसे आज की सरकार भी कुछ वैसा ही कर रही  है, आतंकवादियों के समर्पण पे ढेरो इनाम और जो देश की सेवा   कर के सेवा निर्वित्त हुयें हैं वो पेंशन के लिए दर दर की ठोकरे खा रहें हैं . 
अब शायद कुछ मुल्ले इसको भी झूठ बता दें लेकिन पाठक समझदार है इतिहास उठा के पढ़ ले या गूगल से जान लें .

इस्लामी मंशा :  हम तो   डूबे हैं सनम सबको डूबोयेंगे . हम इस्लामी हैं चाहे गलत या सही , तुम्हे भी बनायेंगे , उलटे पुल्टे दलीलों से . 

२. इस्लाम भाई चारा सिखाता है  : 
किसी भी इस्लामी देश में आप दूसरे धर्म की कोई भी संरचना नहीं बना सकते चाहे वो मंदिर हो या चर्च, क्योकि इस्लाम सर्वधर्म  और भाई चारा सिखाता है . 

मुल्ला दलील १ ,  ने कहा है अल्लाह के अलावा सब कुफ्र है .  तो कम से कम जहाँ इस्लामी शाशन है वहाँ कुफ्र होने से रोका जाना चाहीये. 

जवाब : भाई तो सर्वधर्म  समभाव  और भाई चारा का गला क्यों फाड़ते हो ?? क्यों नहीं खुल के कहते अपनी भाईचारे वाली बात ? 

मुल्ला दलील २ : गैर इस्लामी होना मात्र काफिर होना नहीं है , ये इस्लाम विरोधी तत्वों की दिमाग की उपज है , आप कुरआन से ढंग से पढ़िए , ब्ला ब्ला ,. 

जवाब : कुरआन पढ़ने वालो की देश की हालत और तरीका देख समझ में आ जाता है . ऊपर के तथ्यों में भी जवाब छिपे हैं , जजिया , कुफ्र इत्यादि , इस्लामिक देश में दूसरे धर्म के लोगो कियो छुप के उनके तौर तरीके मानने होते हैं . 

इस्लामी मंशा : भाई चारे के आड़ में जब भी मौका मिले छुरा भोंक दो . 

३ . इस्लाम देश प्रेम भी सिखाता है  : 
बिलकुल सिखाता होगा, कुरआन में जो लिखा है उसको मानना देश प्रेम ही होगा भले ही देश गर्त में चला जाए. 
सूर्य नमस्कार वाले फतवा के दिन मै टीवी देख तरह था, उसमे एक मुल्ला जोर जोर से स्टार टीवी पे कह रहा था , की हम किसी का वंदन नहीं कर सकते, हमारे धर्म से सब छोटा है, चाहे हमारे माँ बाप हो या देश . 

आब आप ही अंदाजा लगा लीजिए , वंदे मातरम किसी बंगाली कवी ने लिखी है, न की किसी हिंदी कवी ने, हाँ धर्म का हिंदू जरुर रहा होगा, लेकिन ये वंदे मातरम नहीं कह सकते भले ही वो देश प्रेम में हो लेकिन कुरआन से जो मेल नहीं खाता .. ( यहाँ इनकी सर्वधर्म समभाव और भाई चारे  वाली बात का एक बार फिर खंडन हुआ है) .  अब इन मुल्लो को कौन बताये की किसी इंसान के चहरे पे खुशी लाना ही धर्म है  चाहे हो हिंदू हो या मुसलमान . उस देश से प्यार करना धर्म है, जहाँ हम रहते हैं चाहे वो हिंदू या मुसलमान,  यदि इस्लाम देश से भी बड़ा है तो निश्चय ही ऐसा कुरआन में लिखा होगा . 

भारत की जनसंख्या पिछले पचास सालों में जीतनी तेजी से मुसलमानों की बढ़ी है शायद ही किसी की बढ़ी हो. क्योकि इस्लाम नसबंदी नहीं सिखाता , जो भी पैदा हो वो खुदा की नेमत हैं , भले देश गर्त में चला जाये . जाहिर सी बात है इस्लाम देशप्रेम सिखाता है . 

मुल्ला दलील : रावन के १०० पुत्र थे, रजा दशरत के चार , और पांडू के पांच पुत्र थे . बड़े आये नसबंदी की वकालत करने वाले . 

जवाब:  ऐसा था लेकिन उस समय की जनसंख्या और आज की जनसख्या में काफी अंतर है, सो  हिंदू धरम के लोगो ने अपने को बदला और किसी धर्म पुस्तक में भी नहीं लिखा है की नसबंदी हरम है,  उन्होंने देश और समस्याओं की परेशानी देख खुद में सुधार लाया, ताकि देश की समस्याएं कम हो, सो परिवार नियोजन अपना लिया. और इस तरह की  सोच जाहिल हिंदू ही रख सकते हैं. ऐसा धर्म ही क्या जो समाज और देश के हित के लिए बदल जाए. धर्म तो  वो है जो कभी न बदले चाहे समाज और देश  गर्त में चला जाए. समाज और देश के बारे में सोचना, हिंदू जैसा घृणित धर्म ही कर सकता है, आज हिंदू के सवर्ण हो या दलित ( दिमाग से - जाती से दलित मै किसी को नहीं मानता )  भी परिवार नियोजन अपना चुके हैं , किसी के घर में भी आज दो से जादा संतान नहीं मिलते लेकिन मुसलमानों के घर में ट्रेन के डब्बे बन जाते हैं यदि इनके औलादों को एक के पीछे एक खड़े कर दो तो . 

हमारी महान सरकार सरकार भी है बेहद अच्छी है , क्योकि परिवार नियोजन के विज्ञापनों में नीचे "नोट " नहीं डालती :- "ये विज्ञापन इस्लाम के मानने वालो के लिए नहीं है".   आखिर धर्म - निरपेक्ष सरकार जो है . 

मुल्ला दलील : नसबंदी कराने से काफी लोगो को परेशानिय हुई हैं ऐसा संज्ञान में आया है डॉक्टरों के. 
जवाब : भाई तब खतना क्यों ?? उससे तो जन्म लेते ही परेशानी होती है . और रोग भी बढ़ता है ढेरो मामलो में . 
यदि नस बंदी करने से खतरा है तो सारे हिंदू खतरे में जी रहें हैं .   भाई गला भी काट के फींक दो क्योकि उसमे भी कैंसर होता है , टाँगे भी काट दो , क्योकि पोलियो तो वहाँ भी होता है .

मुल्ला दलील २ (नसबंदी पे ) : जो चीजें भगवान ने बनायीं हैं उनसे छेड़ छाड क्यों करना ??

जवाब : बिलकुल सही बात और सहमत , तो कटुवों भगवान जे जो जनेन्द्रिय दी है वो क्यों प्राकृतिक नहीं ?? क्या उसका निर्माण पैदा हो के तुम खुद करते हो ?? क्यों नहीं  प्राकृतिक  अवस्था में रहने देते ??? क्या इस्लाम दोगली विचारधारा रखना सिखाता है ???

इस्लामी मंशा  : खतना करने सेक्स की भावना बढती है , जिससे जनसँख्या बढ़ाने में मदद मिलती है ,और नसबंदी न करा के इसी भावना को मजबूत किया  जाता है .

मुल्लो का सारा देश प्रेम काफूर हो जाता है जब इनको ये कहा जाता है की देश के लिए नसबंदी क्यों नहीं कराते ? तब ये तत्काल देश को भांड में झोक कर अल्लाह हू लाफुअर का हवाला देते है . 

४ . इस्लाम अच्छा और सबसे उच्च धर्म है . 

मुल्ला दलील : इस्लाम की  अच्छाईयों की वजह से इस्लाम मानने वाले तेजी से बढ़ रहें है .  

जवाब : जाहिर सी बात है अच्छा धर्म है , सर्वधर्म समभाव इस्लाम सिखाता है , देश प्रेम इस्लाम सिखाता है  ( जैसा की मैंने ऊपर लिखा है ) .  इस्लाम के अनुयायी  तेजी से बढ़ रहें हैं , नए नए , क्योकि ये अपनी संतानों को जो बिना नसबंदी की वजह से पैदा हो रहें हैं उनको तो ये मार देते हैं है शायद, और दूसरे धर्म वाले अपना रहें है इस्लामी अच्छाईयों की वजह से . सो इस्लाम बढ़ रहा है . 

अरे भाई जिस धर्म में  देश और तात्कालिक  समस्यायों और परिस्थितयों को ताक  पे रख जनसंख्या बढ़ाना लिखा हो वो तो बढ़ेगा ही न धरती का बोझ बन के .  

इस्लामी मंशा : अपनी बुराईयों को भी अच्छाई बताओ मंद दलीलों से ,  और दूसरे से नफरत करते रहो . 

५ . इस्लाम का मतलब है शान्ति : 

मुल्ला दलील :  इस्लाम शांति का प्रतीक है, जीवन के तरीके सिखाता है . वैज्ञानिक धर्म है . 

जवाब : हाँ जी है शांति का प्रतीक, क्योकि धर्म के नाम पे जेहाद कर कुफ्र ( दूसरे धर्मो की पूजा आदि ) को रोकना शान्ति फैलाना है, काफिरों ( जो इस्लाम धर्म का न हो ) के भावनाओं  को आहत करना कुरआन में शांति कहलाता है.  वैज्ञानिक भी है, क्योकि मोहम्मद ने कहा है की प्रथ्वी चपटी है , और भूकंप न आये इसलिए पहाड़ पर्वत गाड़ दिए , जाहिर सी बात है एसी वैज्ञानिक बात इस्लामी धर्म का कुरआन ही कह सकता है, हिंदू धर्म के आर्यभट्ट ने तो बेवकूफ बनाया सबको. जन्नत में बत्तर हूरे की गाडना भी तो गणित और विज्ञानिक पद्दति से होती होगी, जो की मुसलमानों को मिलती है , हिन्दुओ में तो अप्सरा का सुनो है , लेकिन हिन्दुओ के मरने के बाद मिलती हैं या नहीं  ये किसी धर्म में नहीं लिखा , जाहिर सी बात है इस्लाम वैज्ञानिक धर्म भी है . 

इस्लामी मंशा :  जहाँ भी रहो अपनी जनसंख्या बढाओ, शरियत लगाओ, क्योकि उसमे चार चार बीवियों से सेक्स करने को मिलेगा.  और जहाँ कमजोर पडो वहाँ कुछ भी मंद्बुध्धि दलीले देते रहो , जहाँ मजबूत हो वहाँ क़त्ल कर दो. 

अंत में सबसे बड़ी बात ये की इन्हें इनके खुद के निशानी से बुलाओ तो चिढते हैं बजाय इसके की गर्व करें , जरा "कटुवा " कह के देखिये . अरे भाई जब तुम्हारे धर्म ने तुम्हे कटुआ बनाया है तो चिढना क्या ?? गर्व से कहो की तुम कटुवा  हो .  अब  हिंदू धर्म के यज्ञोपवीत संस्कार वाले को जनेऊधारी कहो तो गर्व महसूस करेगा , तो तुम्हारे खतना के बाद कटुवा कहलाने से एतराज क्यों ?? क्या इस्लाम के संस्कार इतने हराम है .. 

साथ ही मेरा एक और लेख पढ़ें  इस्लाम और इस्लाम की कुरीतियाँ   (लिंक पर किल्क करें )  .. 
बाकी की चर्चा भाग दो में . 

भारत में इस्लाम, तलवार के धार पर फैलाई गयी कुरीति है, कोई धर्म नहीं



सुनने अटपटा है, लेकिन सच है ,हो सकता है इस लेख के बाद सेकुलरों की नज़रे मेरे ऊपर तीखी हो जाए, गालियाँ भी सुननी पड़े, या अरब कनेक्टेड लोग मेरे ऊपर फतवा जारी कर दें, या सेकुलर  कोंग्रेस सरकार करवाई कर दे (वो बात अलग है की अलगावादी गिलानी और अपने को आए एस आई का एजेंट कहने वाले बुखारी को सर आँखों पे रखती है ) .  फिर भी सच तो बताना ही पड़ेगा. वो बात अलग है की ये हिंदू सच बताने के लिए तलवार का सहारा नहीं लेगा.  

लेकिन इससे पहले ये जान लेना जरुरी है की इस्लाम क्या है ????

इस्लामी कठमुल्लो ने इस्लाम का मतलब "अमन" (शांति)  बताया, एसी शांति जिसको फ़ैलाने के लिए तलवार की जरुरत आन पड़ी. क्यों आन पड़ी ये नहीं बताया. 

मोहम्मद को अल्लाह का अंतिम बन्दा बताया जो अल्लाह से सीधे संवाद स्थापित करता था, आईये पहले इस तथाकथित शान्ति के दूत के बारे में जान लें . 

मोहम्मद का जन्म ५७० इसा पूर्व अरब के मक्का शहर में हुआ था,  अल्लाह  की इनके ऊपर बड़ी रहमत थी , पहली रहमत की अल्लाह ने पिता का साया इस अल्लाह के बंदे से  जन्म होने के पूर्व ही छीन लिया था और जन्नत में कँवारी ७२ हूरों के साथ मजा लेने के लिए भेज दिया, और दूसरी रहमत करने के लिए अल्लाह ने छः साल का समयावधि लिया सो छः साल के उम्र में माँ भी  निकल लीं. इनकी माँ को जन्नत में ७२ लौंडो की सेवा मिली होगी या नहीं अल्लाह ही जनता है .  फिर इनकी देख रेख का जिम्मा इनके दादा जी ने लिया, अब चुकी अल्लाह के रहमत का कोई ठिकाना नहीं सो दो साल बाद ये भी जन्नत चल दिए ७२ हूरों का मजा लेने. यानी अब तक १४४ कँवारी  हूरे मोहम्मद के खानदान के नाम अल्लाह ने कर दिया. इसके बाद इनका जिम्मा मिला इनके चचा अबू तालिब को.  बात ये है की ये खुद अल्लाह का एक रूप थे जो इस दुनिया को प्रकाश दिखने और बोझ से हल्का करने आये थे अलबत्ता बार बार ये खुद ही बोझ बनते रहे. 

अब आगे देखिये, जब २५ साल के हुए तो इन्होने एक ४० वर्षीय महिला खादिजाह से विवाह सिर्फ इसलिए किया क्योकिं वो एक बड़ी व्यापारी थी. मजे की बात ये है की मोहम्मद ४० वरसो तक किंकर्तव्य विमूढ़ थे, जब ये ४० साल के हुए तब इन्हें अल्लाह का पहला अनुभव हुआ ६१० ईसापूर्व में. फिर लगे उलटी सीधी बाते बोलने (की दुनिया बचाने का कांट्रेक्ट बस अल्लाह के पास है और कोई टेंडर नहीं लिया जायेगा )  जिससे  लोगो में आक्रोश बढ़ा, और अल्लाह का ये बन्दा चोरों की तरह फरार हो गया. उसके बाद मक्का मदीना में खूब लड़ाईयां हुई  शरिया कानून को ले के. ६३० इसा पूर्व जनवरी माह में इसा ने दस हजार खूंखार कातिलों की फ़ौज खड़ी की और चल पड़े मक्का विरोधियों को दोजख भेजने . काबा की ३६० मूर्तियां तोड के और सबको क़त्ल करने के बाद मुसल्मानियत उर्फ इस्लाम की नीव रखी, ये है शांतिपूर्ण इस्लाम के स्थापना का इतिहास . 

जिस धर्म की स्थापना ही तलवार के बल पे हुयी हो वो धर्म है या विकृति या कुरीति आप ही निर्णय कीजिये. 

और इसी तलवार के दम पे इसे पुरे विश्व में फैलाया गया. 

चुकी भारत वैदिक सभ्यता और अहिंसा में विश्वास रखता था सो यहाँ कब्ज़ा जमाना जादा आसान था. 

इस्लाम की कुछ प्रमुख एवं हास्यपद बातें : 

१. खतना : 
हर मुस्लिम का एक़ कामन पेटेंट ठप्पा होगा होगा अर्थात "खतना" होन अनिवार्य है, इस प्रकिया में नवजात बच्चे के लिंग का अगला हिस्सा उतार दिया जाता है . 
अब सोचिये जिस धर्म में पैदा होते ही दर्द है उसमे शान्ति कहाँ ? और इस्लाम इसका कोई तर्क भी नहीं दे पाया है की ऐसा क्यों करें ?? 

२. हर मुस्लिम ४ बीवियां रख सकता है : 
यानि स्त्री को भोग  की वस्तु समझा गया, शुक्रवार के नमाज के बाद रविवार तक आराम , उसके बाद सोमवार से बुध्ध्वार तक  समय सारिणी बना लो किस दिन किसके साथ सोना है . 

३. नसबंदी हराम है : 
जम के बच्चे पैदा करो, जहाँ रहो वहाँ बहुल हो जाओ और अलगाव वादी प्रक्रिया शुरू कर दो चाहे चेचन्या हो या कश्मीर . यानी आठ आठ -दस दस बच्चे पैदा करो फिर सरकार से कहो की आरक्षण दो नहीं तो वोट नहीं देंगे . 

४. काफिर : 
जो इस्लाम न माने वो काफिर , और कुरआन काफिरों को क़त्ल करने की इजाजत देता है, यानि जितने भी हिंदू है जो इस्लाम नहीं मानते वो काफ़िर है , यदि उनको मर दिया जाए तो जन्नत नसीब होगी जहाँ ७२ कुँवारी हूरे  उनका इन्तजार कर रही होंगी. 

५ . जन्नत : 
काफिरो को मरने पे  जन्नत नसीब होगी जहाँ ७२ कुँवारी हूरे  उनका इन्तजार कर रही होंगी. 

६ . मूर्तिपूजा निषेध : 
इस्लाम में पत्थर पूजा निषेध है , लेकिन फिर भी काबा के पत्थर  में पत्थर मारने होड लगी रहती है . 

७. मजहब देश से बड़ा : 
इनके लिए मजहब हमेशा देश से बड़ा होता है , यदि किसी देश का राष्ट्र गान इनके मजहब के हिसाब से नहीं है तो इनके लिए हराम है और दूसरा उदहारण कश्मीर में पाक के साथ यूध्ध का, जब कश्मीरी इस्लाम सेनाए पाकिस्तान  से  बस इसलिए मिल गयी क्योकि पकिस्तान एक इस्लाम देश है अपने कौम को किनारे रख के और ये बात पूरा विश्व जानता है शायद इसीलिए मुसलमानों पे कोई भी देश भरोसा करने को तैयार नहीं, इनका दोगलापन देख के , खाते कही और का और सोचते सिर्फ अरब का हैं . 

८. हिंदू विरोधी धर्म : 
इस्नके सारे कांड वैदिक से उलटे होते हैं , चाहे वो लिखना हो या धोना , शायद किसी समय पैर की बजाय सर से भी चलने की कोशिश की होगी (उल्टा करने के चक्कर में ) सो चुन्डी घिस गयी होगी, इसीलिए कोई भी मुसलमान चुन्डी  नहीं रखता शर्म के मारे. 

९ जिहाद :
जिहाद शब्द का जन्म इस्लाम के जन्म के साथ ही हो गया था। जिहाद अरबी का शब्द है जिसका अर्थ है जोइस्लाम न माने उसको समाप्त कर दो "। भारत में पहला आक्रमणकारी मोहम्मद बिन कासिम था जिसने 8वीं शताब्दी में सिंध पर आक्रमण किया था। तत्पश्चात् 11वीं शताब्दी में महमूद गजनवी तथा उसके बाद मोहम्मद गोरी आक्रांता के रूप में भारत आया।
इस्लाम ग्रहण करने से पूर्व मध्य एशिया के कबीले आपस में ही मार-काट और लड़ाइयां करते थे। अत्यधिक समृद्ध भारत उनके लिए आकर्षण का केन्द्र था। और जब इन कबीलों ने इस्लाम ग्रहण कर लिया तो इनका उद्देश्य दोहरा हो गया। लूट-पाट करने के साथ-साथ विजित देश में बलपूर्वक इस्लाम का प्रसार करना। इसलिए कहा जाता था कि इस्लाम जहां जाता था-एक हाथ में तलवार, दूसरे में कुरान रखता था।
जिहाद से भारत का सम्बंध हजार वर्ष पुराना है। भारत में वर्षों शासन करने वाले बादशाह भी जिहाद की बात करते थे। 13वीं 14वीं शताब्दी के दौरान मुसलमानों के अंदर ही एक अन्य समानांतर धारा विकसित हुई। यह थी सूफी धारा। हालांकि सूफी धारा के अगुआ भी इस्लाम का प्रचार करते थे किन्तु वे प्रेम और सद्भाव से इस्लाम की बात करते थे। किन्तु बादशाहों पर सूफियों से कहीं अधिक प्रभाव कट्टरपंथियों का था। इस्लाम के साथ-साथ जिहाद शब्द और जिहादी मनोवृत्ति को भारत पिछले हजार वर्षों से झेल रहा है।
अब चुकी भारत वैदिक और अहिंसा वादी था सो इन बर्बर नीच पापियों का प्रभुत्व जल्दी जम गया फिर भी बहुत जादा नुक्सान न कर पाए . 

Thursday 9 August 2012

रंगीला रसूल : एक परिचय


सन १९२३ में मुसलमानों की ओर से दो पुस्तकें ” १९ वीं सदी का महर्षि “और “कृष्ण,तेरी गीता जलानी पड़ेगी ” प्रकाशित हुई थी. पहली पुस्तक में आर्यसमाज का संस्थापक स्वामी दयानंद का सत्यार्थ प्रकाश के १४ सम्मुलास में कुरान की समीक्षा से खीज कर उनके विरुद्ध आपतिजनक एवं घिनोना चित्रण प्रकाशित किया था जबकि दूसरी पुस्तक में श्री कृष्ण जी महाराज के पवित्र चरित्र पर कीचड़ उछाला गया था. उस दौर में विधर्मियों की ऐसी शरारतें चलती ही रहती थी पर धर्म प्रेमी सज्जन उनका प्रतिकार उन्ही के तरीके से करते थे. 
महाशय राजपाल ने स्वामी दयानंद और श्री कृष्ण जी महाराज के अपमान का प्रति उत्तर १९२४ में रंगीला रसूल के नाम से पुस्तक छाप कर दिया जिसमे मुहम्मद साहिब की जीवनी व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत की गयी थी. यह पुस्तक उर्दू में थी और इसमें सभी घटनाएँ इतिहास सम्मत और प्रमाणिक थी. पुस्तक में लेखक के नाम के स्थान पर “दूध का दूध और पानी का पानी छपा था”. वास्तव में इस पुस्तक के लेखक पंडित चमूपति जी थे जो की आर्यसमाज के श्रेष्ठ विद्वान् थे. वे महाशय राजपाल के अभिन्न मित्र थे. मुसलमानों के ओर से संभावित प्रतिक्रिया के कारण चमूपति जी इस पुस्तक में अपना नाम नहीं देना चाहते थे इसलिए उन्होंने महाशय राजपाल से वचन ले लिया की चाहे कुछ भी हो जाये,कितनी भी विकट स्थिति क्यूँ न आ जाये वे किसी को भी पुस्तक के लेखक का नाम नहीं बतायेगे. 
 महाशय राजपाल ने अपने वचन की रक्षा अपने प्राणों की बलि देकर की पर पंडित चमूपति सरीखे विद्वान् पर आंच तक न आने दी.१९२४ में छपी रंगीला रसूल बिकती रही पर किसी ने उसके विरुद्ध शोर न मचाया फिर महात्मा गाँधी ने अपनी मुस्लिम परस्त निति में इस पुस्तक के विरुद्ध एक लेख लिखा. इस पर कट्टरवादी मुसलमानों ने महाशय राजपाल के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ दिया. सरकार ने उनके विरुद्ध १५३ए धारा के अधीन अभियोग चला दिया. अभियोग चार वर्ष तक चला. राजपाल जी को छोटे न्यायालय ने डेढ़ वर्ष का कारावास तथा १००० रूपये का दंड सुनाया. इस फैसले के विरुद्ध अपील करने पर सजा एक वर्ष तक कम कर दी गयी. इसके बाद मामला हाई कोर्ट में गया. कँवर दिलीप सिंह की अदालत ने महाशय राजपाल को दोषमुक्त करार दे दिया.
मुसलमान इस निर्णय से भड़क उठे. खुदाबख्स नामक एक पहलवान मुसलमान ने महाशय जी पर हमला कर दिया जब वे अपनी दुकान पर बैठे थे पर संयोग से आर्य सन्यासी स्वतंत्रानंद जी महाराज एवं स्वामी वेदानन्द जी महाराज वह उपस्थित थे. उन्होंने घातक को ऐसा कसकर दबोचा की वह छुट न सका. उसे पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया गया, उसे सात साल की सजा हुई. रविवार ८ अक्टूबर १९२७ को स्वामी सत्यानन्द जी महाराज को महाशय राजपाल समझ कर अब्दुल अज़ीज़ नमक एक मतान्ध मुसलमान ने एक हाथ में चाकू ,एक हाथ में उस्तरा लेकर हमला कर दिया. स्वामी जी घायल कर वह भागना ही चाह रहा था की पड़ोस के दूकानदार महाशय नानकचंद जी कपूर ने उसे पकड़ने का प्रयास किया.इस प्रयास में वे भी घायल हो गए. तो उनके छोटे भाई लाला चूनीलाल जी जी उसकी ओर लपके.उन्हें भी घायल करते हुए हत्यारा भाग निकला पर उसे चौक अनारकली पर पकड़ लिया गया. उसे चोदह वर्ष की सजा हुई ओर तदन्तर तीन वर्ष के लिए शांति की गारंटी का दंड सुनाया गया.
 स्वामी सत्यानन्द जी के घाव ठीक होने में करीब डेढ़ महीना लगा.६ अप्रैल १९२९ को महाशय अपनी दुकान पर आराम कर रहे थे. तभी इल्मदीन नामक एक मतान्ध मुसलमान ने महाशय जी की छाती में छुरा घोप दिया जिससे महाशय जी का तत्काल प्राणांत हो गया.हत्यारा अपने जान बचाने के लिए भागा ओर महाशय सीताराम जी के लकड़ी के टाल में घुस गया. महाशय जी के सपूत विद्यारतन जी ने उसे कस कर पकड़ लिया.पुलिस हत्यारे को पकड़ कर ले गयी. देखते ही देखते हजारों लोगो का ताँता वहाँ पर लग गया.देवतास्वरूप भाई परमानन्द ने अपने सम्पादकीय में लिखा हैं की “आर्यसमाज के इतिहास में यह अपने दंग का तीसरा बलिदान हैं. पहले धर्मवीर लेखराम का बलिदान इसलिए हुआ की वे वैदिक धर्म पर किया जाने वाले प्रत्येक आक्षेप का उत्तर देते थे. उन्होंने कभी भी किसी मत या पंथ के खंडन की कभी पहल नहीं की. सैदेव उत्तर- प्रति उत्तर देते रहे. 
दूसरा बड़ा बलिदान स्वामी श्रद्धानंद जी का था. उनके बलिदान का कारण यह था की उन्होंने भुलावे में आकर मुसलमान हो गए भाई बहनों को, परिवारों को पुन: हिन्दू धर्म में सम्मिलित करने का आन्दोलन चलाया और इस ढंग से स्वागत किया की आर्य जाति में “शुद्धि” के लिए एक नया उत्साह पैदा हो गया. विधर्मी इसे न सह सके. तीसरा बड़ा बलिदान महाशय राजपाल जी का हैं.जिनका बलिदान इसलिए अद्वितीय हैं की उनका जीवन लेने के लिए लगातार तीन आक्रमण किये गए. पहली बार २६ सितम्बर १९२७ को एक व्यक्ति खुदाबक्श ने किया दूसरा आक्रमण ८ अक्टूबर को उनकी दुकान पर बैठे हुए स्वामी सत्यानन्द पर एक व्यक्ति अब्दुल अज़ीज़ ने किया. ये दोनों अपराधी अब कारागार में दंड भोग रहे हैं. इसके पश्चात अब डेढ़ वर्ष बीत चूका हैं की एक युवक इल्मदीन, जो न जाने कब से महाशय राजपाल जी के पीछे पड़ा था, एक तीखे छुरे से उनकी हत्या करने में सफल हुआ हैं. 
जिस छोटी सी पुस्तक लेकर महाशय राजपाल के विरुद्ध भावनायों को भड़काया गया था, उसे प्रकाशित हुए अब चार वर्ष से अधिक समय बीत चूका हैं.”.महाशय जी का अंतिम संस्कार उसी शाम को कर दिया गया. परन्तु लाहौर के हिंदुयों ने यह निर्णय किया की शव का संस्कार अगले दिन किया जाये. पुलिस के मन में निराधार भूत का भय बैठ गया और डिप्टी कमिश्नर ने रातों रात धारा १४४ लगाकर सरकारी अनुमति के बिना जुलुस निकालने पर प्रतिबन्ध लगा दिया. अगले दिन प्रात: सात बजे ही हजारों की संख्या में लोगो का ताँता लग गया. सब शव यात्रा के जुलुस को शहर के बीच से निकल कर ले जाना चाहते थे पर कमिश्नर इसकी अनुमति नहीं दे रहा था. इससे भीड़ में रोष फैल गया. अधिकारी चिढ गए. अधिकारियों ने लाठी चार्ज की आज्ञा दे दी. पच्चीस व्यक्ति घायल हो गए . अधिकारियों से पुन: बातचीत हुई. पुलिस ने कहाँ की लोगों को अपने घरों को जाने दे दिया जाये. इतने में पुलिस ने फिट से लाठी चार्ज कर दिया. १५० के करीब व्यक्ति घायल हो गए पर भीड़ तस से मस न हुई. शव अस्पताल में ही रखा रहा. दुसरे दिन सरकार एवं आर्यसमाज के नेताओं के बीच एक समझोता हुआ जिसके तहत शव को मुख्य बाजारों से धूम धाम से ले जाया गया. हिंदुयों ने बड़ी श्रद्धा से अपने मकानों से पुष्प वर्षा करी.
ठीक पौने बारह बजे हुतात्मा की नश्वर देह को महात्मा हंसराज जी ने अग्नि दी. महाशय जी के ज्येष्ठ पुत्र प्राणनाथ जी तब केवल ११ वर्ष के थे पर आर्य नेताओं ने निर्णय लिया की समस्त आर्य हिन्दू समाज के प्रतिनिधि के रूप में महात्मा हंसराज मुखाग्नि दे. जब दाहकर्म हो गया तो अपार समूह शांत होकर बैठ गया. ईश्वर प्रार्थना श्री स्वामी स्वतंत्रानंद जी ने करवाई. प्रार्थना की समाप्ति पर भीड़ में से एकदम एक देवी उठी. उनकी गोद में एक छोटा बालक था.यह देवी हुतात्मा राजपाल की धर्मनिष्ठा साध्वी धर्मपत्नी थी. उन्होंने कहा की मुझे अपने पति के इस प्रकार मारे जाने का दुःख अवश्य हैं पर साथ ही उनके धर्म की बलिवेदी पर बलिदान देने का अभिमान भी हैं. वे मारकर अपना नाम अमर कर गए.
पंजाब के सुप्रसिद्ध पत्रकार व कवि नानकचंद जी “नाज़” ने तब एक कविता महाशय राजपाल के बलिदान का यथार्थ चित्रण में लिखी थी-
फ़ख से सर उनके ऊँचे आसमान तक तक हो गए,हिंदुयों ने जब अर्थी उठाई राजपाल.
फूल बरसाए शहीदों ने तेरी अर्थी पे खूब, देवताओं ने तेरी जय जय बुलाई राजपाल
हो हर इक हिन्दू को तेरी ही तरह दुनिया नसीब जिस तरह तूने छुरी सिने पै खाई राजपाल
तेरे कातिल पर न क्यूँ इस्लाम भेजे लानतें, जब मुजम्मत कर रही हैं इक खुदाई राजपाल
मैंने क्या देखा की लाखों राजपाल उठने लगे दोस्तों ने लाश तेरी जब जलाई राजपाल

साभार  , विभिन्न स्रोत